14-04-94  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

स्नेह का रिटर्न है - स्वयं को टर्न (परिवर्तन) करना

शुभ संकल्पों का महत्व बताने वाले, स्नेह वा शक्ति मूर्त बापदादा अपने स्नेही बच्चों की सभा को देखते हुए बोले-

आज स्नेह और शक्ति मूर्त बापदादा अपने चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। जितनी सभा साकार में है, उससे भी ज्यादा आकारी रूप की सभा है। सर्व साकार रूपधारी वा आकार रूपधारी बच्चों को बापदादा स्नेह की भुजाओं में समाये हुए हैं। स्नेह की भुजायें कितनी बड़ी हैं! चारों ओर के सभी बच्चे स्नेह की भुजाओं में ऐसे समा जाते हैं, जैसे नदी सागर में समा जाती है। स्नेह की भुजायें, स्नेह का सागर बेहद है। सभी बच्चे, चाहे नम्बरवार भी हैं लेकिन स्नेह में सब बन्धे हुए हैं। सर्व बच्चों में बापदादा का स्नेह समाया हुआ है। स्नेह की शक्ति से ही सभी आगे उड़ते जा रहे हैं। स्नेह की उड़ान सर्व बच्चों को तन से वा मन से, दिल से बाप के समीप लाती है। स्नेह का विमान सेकण्ड की गति से बाप के समीप लाता है। ज्ञान, योग, धारणा उसमें यथाशक्ति नम्बरवार हैं लेकिन स्नेह में हर एक अपने को नम्बर वन अनुभव करते हैं। स्नेह सर्व बच्चों को ब्राह्मण जीवन प्रदान करने का मूल आधार है। अगर सभी बच्चों से पूछें कि निरन्तर योगी हो? निरन्तर ज्ञान स्वरूप हो? ज्ञानी नहीं लेकिन ज्ञान स्वरूप हो? तो सोचेंगे, कहेंगे ‘हैं तो.....’ निरन्तर धारणा स्वरूप हो, तो क्या कहेंगे? लक्ष्य तो है ही। लेकिन जब पूछेंगे कि निरन्तर स्नेही हो तो कहेंगे ‘हाँ जी’। स्नेह में सभी पास हैं। कोई पास विद् ऑनर हैं, कोई पास हैं। पास हैं ना? डबल विदेशी, भारत वाले सब पास हैं? पास नहीं होते तो पास नहीं आते। पास आना सिद्ध करता है कि पास हैं। स्नेह का अर्थ ही है पास रहना और पास होना और हर परिस्थिति को बहुत सहज पास करना। तो सभी तीनों में पास हो ना? पास करना भी सहज है ना कि पास करने में कभी मुश्किल, कभी सहज है? पास रहने में तो आनन्द ही आनन्द है और पास करना इसमें नम्बरवार हैं या सब नम्बर वन हैं? देखो, नम्बर वन नहीं कहते हैं, सभी चुप हो गये माना समाथिंग है। लेकिन समय प्रति समय स्नेह की शक्ति से पास करना भी इतना ही सहज हो रहा है और होना ही है जैसे पास रहना सहज है और जब पास करना सदा सहज हो जायेगा तो पास होना क्या, पास हुए ही पड़े हैं। यह तो पक्का निश्चय है कि पास हुए ही पड़े हैं। सिर्फ रिपीट करना है। इतना अटल निश्चय है ना? दूर बैठे भी सब नजदीक हो ना! दिलतख्त पर हैं। कोई नयनों के नूर हैं, कोई दिल तख्तनशीन हैं। सबसे नजदीक नयन हैं और दिल है। आप सभी ओम शान्ति भवन में नहीं बैठे हो लेकिन बापदादा के दिल तख्त पर या नयनों में नूरे रत्न बन समाये हुए हो। समाया हुआ कभी दूर नहीं होता।

इस वर्ष क्या करेंगे? कहने में तो कहते हो कि इस वर्ष के मिलन की अन्तिम बारी है। लेकिन अन्त, आदि की याद ज्यादा दिलाता है। आदि, मध्य की याद दिलाता है लेकिन अन्त आदि की याद दिलाता। तो अन्त नहीं, लेकिन आदि है। तीव्र गति के उड़ान की आदि है। जो अनादि रफ्तार है, अनादि स्वरूप है आत्म स्वरूप, तो अनादि स्वरूप की रफ्तार क्या है? कितनी तेज रफ्तार है! आजकल के भिन्न-भिन्न साइन्स के साधनों के तीव्र गति से भी तीव्र गति। साइन्स के साधनों की रफ्तार फिर भी साइन्स, साइन्स द्वारा रफ्तार को कट भी कर सकती, पकड़ सकती है लेकिन आत्मा की गति को कोई अभी तक न पकड़ सका है, न पकड़ सकता है। इसमें ही साइन्स अपने को फेल समझती है। और जहाँ साइन्स फेल है वहाँ साइलेन्स की शक्ति से जो चाहो वो कर सकते हो। तो आत्म शक्ति की उड़ान की तीव्र गति की आदि करो। चाहे स्व परिवर्तन में, चाहे किसी की भी वृत्ति परिवर्तन में, चाहे वायुमण्डल परिवर्तन में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क के परिवर्तन में अभी तीव्र गति लाओ। तीव्रता की निशानी है सोचा और हुआ। ऐसे नहीं, सोचा तो है.. हो जायेगा..। नहीं, सोचा और हुआ, संकल्प, बोल और कर्म तीनों श्रेष्ठ साथ-साथ हों। व्यर्थ को वा उल्टे संकल्प को चेक करो तो उसकी गति बहुत फास्ट होती है। अभी-अभी संकल्प आया, अभी-अभी बोल लिया, अभी-अभी कर भी लिया। संकल्प, बोल, कर्म इकठ्ठा-इकठ्ठा बहुत फास्ट होता है। उसकी गति का जोश इतना तीव्र होता है जो श्रेष्ठ संकल्प, कर्म, मर्यादा, ब्राह्मण जीवन की महानता का होश समाप्त हो जाता है। व्यर्थ का जोश-सत्यता का होश, यथार्थता का होश समाप्त कर देता है और कुछ समय के बाद जब होश आता तब सोचते हैं करना नहीं चाहिये था, यथार्थ नहीं है लेकिन उस समय जब जोश होता है तो यथार्थ की पहचान बदल कर अयथार्थ को यथार्थ अनुभव करते हैं। तो व्यर्थ का जोश, होश को æखत्म कर देता है। तो इस वर्ष सभी बच्चे विशेष व्यर्थ से इनोसेन्ट बनो। जैसे जब आप आत्मायें अपने सतयुगी राज्य में थीं तो व्यर्थ वा माया से इनोसेन्ट थीं इसलिये देवताओं को महान आत्मायें, सेन्ट कहते हैं, ऐसे अपने वो संस्कार इमर्ज करो, व्यर्थ की अविद्या स्वरूप बनो। समय, श्वास, बोल, कर्म, सर्व में व्यर्थ की अविद्या अर्थात् इनोसेन्ट। जब व्यर्थ की अविद्या हो गई तो दिव्यता स्वत: ही सहज ही अनुभव होगी और अनुभव करायेगी। अभी तक यह नहीं सोचो कि पुरूषार्थ तो कर ही रहे हैं...। पुरूष इस रथ पर कर रहा है तो पुरूष बन रथ द्वारा वराना-इसको कहा जाता है पुरूषार्थ। पुरूषार्थ चल रहा है, नहीं, लेकिन पुरुषार्थी सदा उड़ रहा है। यथार्थ पुरुषार्थी इसको कहा जाता है। पुरूषार्थ का अर्थ यह नहीं है कि एक बारी की गलती बार-बार करते रहो और पुरूषार्थ को अपना सहारा बनाओ। यथार्थ पुरुषार्थी हो, स्वभाव भी स्वाभाविक हो, अति सहज। अभी मेहनत को किनारे करो। अल्पकाल के आधारों का सहारा, जिसको किनारा बनाकर रखा है, ये अल्पकाल के सहारे के किनारे अभी छोड़ दो। जब तक ये किनारे हैं तो सदा बाप का सहारा अनुभव नहीं हो सकता और बाप का सहारा नहीं है इसलिये हद के किनारों को सहारा बनाते हैं। चाहे अपने स्वभाव-संस्कारों को, चाहे परिस्थितियों को, जो किनारे बनाये हैं ये सब अल्पकाल के दिखावा-मात्र धोखे वाले हैं। धोखे में नहीं रह जाओ। बाप का सहारा छत्रछाया है। अल्पकाल की बातें धोखेबाज हैं। माया की बहुत मीठी-मीठी बातें सुनते रहते हैं, बहुत सुन चुके हैं। जैसे द्वापर के शास्त्र बनाने वाले बातें बनाने में बहुत होशियार हैं, कितनी मीठी-मीठी बातें बना दी हैं। तो बातें नहीं बनाओ, बातें बनाने में सब एक-दो से होशियार हैं। न बातें बनाओ, न बातें देखो, न बातें करो। लेकिन क्या करो? बाप को देखो, बाप समान करो, बाप समान बनो। जब कोई बात सामने आती तो बात बनाना सेकण्ड में आ जाता है। क्योंकि माया की गति भी तीव्र है ना। ऐसे सुन्दर रूप की बात बना देती है जो सुनते बाप को तो हंसी आती है लेकिन दूसरे प्रभावित हो जाते हैं-बोलते तो ठीक हैं, बहुत अच्छा है, बात तो ठीक है और स्वयं को भी ठीक लगते हो। लेकिन समय की तीव्र गति को देख अब इन किनारों से तीव्र उड़ान करो। ये अनेक प्रकार की बातें व्यर्थ रजिस्टर के रोल बनाती रहती हैं। रोल के ऊपर रोल बनता जाता है। इसलिये इससे इनोसेन्ट बनो। इस इनोसेन्ट स्टेज से बनी-बनाई सेवा की स्टेज आपके सामने आयेगी। इस वर्ष के यथार्थ पुरूषार्थ के प्रत्यक्षफल की निशानी बनी-बनाई सेवा आपके सामने आयेगी। व्यर्थ का सामना करना समाप्त करो तो सेवा की ऑफर सामने आयेगी। आप सभी सेवा के निमित्त तो अनेक वर्ष बने, अब औरों को निमित्त बनाने की सेवा के निमित्त बनो। माइक वो हो और माइट आप हो। बहुत समय आप माइक बने, अब माइक औरों को बनाओ, आप माइट बनो। आपके माइट से माइक निमित्त बनें। इसको कहा जाता है तीव्र गति के उड़ान की निशानी। समझा क्या करना है? तीव्र उड़ान है ना। कि कभी तीव्र, कभी स्लो? सदा तीव्र गति के उड़ान से उड़ते रहेंगे। बादलों को देख घबराओ नहीं। ये बातें ही बादल हैं। सेकण्ड में क्रॉस करो। विधि को जानो और सेकण्ड में विधि द्वारा सिद्धि को प्राप्त करो। एक तरफ है रिद्धि-सिद्धि का फोर्स और आपका है विधि सम्पन्न सिद्धि का फोर्स। रिद्धि-सिद्धि है अल्पकाल और विधि-सिद्धि सदाकाल के लिये।

बापदादा अभी ऐसा ग्रुप चाहता है जो सदा मन्सा में, वाणी में, बोल में, सम्पर्क में जो ओटे सो अर्जुन। मैं अर्जुन हूँ। मैं जो करूँगा, (‘मैं’ बॉडी कॉन्सेस का नहीं, मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ) मुझे देख और करेंगे। तो जो ओटे सो अर्जुन। जो गाया हुआ है, अव्वल नम्बर अर्थात् अर्जुन, अलौकिक जन। ऐसा ग्रुप बापदादा देखना चाहते हैं। बातों को नहीं देखें, दूसरों को नहीं देखें, दूसरे का व्यर्थ नहीं सुनें। बस, अलौकिक जन। संकल्प, बोल और कर्म सबमें अलौकिक, दिव्यता की झलक हो। इसको कहा जाता है अर्जुन, अलौकिक जन। ऐसा ग्रुप इस वर्ष में तैयार होगा कि दूसरे वर्ष में तैयार होगा? जो इस ग्रुप में आना चाहते हैं वह हाथ उठाओ। मुझे बनना है, मैं अर्जुन हूँ। फिर कोई ऐसा समाचार नहीं आवे-क्या करें.. हो जाता है.. सरकमस्टांस ऐसे हैं.. मदद नहीं मिलती है.. दुआयें नहीं मिलती हैं.. सहारा नहीं मिलता.. जिन्हों को कुछ समय चाहिये वो हाथ उठाओ। एक-दो मास चाहिये वा एक वर्ष चाहिये। जो भी ग्रुप आवे उनसे पूछना फिर रिजल्ट सुनाना। टीचर्स तो पहले। क्योंकि जो निमित्त बनते हैं उनका सूक्ष्म वायुमण्डल, वायब्रेशन्स जरूर जाता है। पदमगुणा पुण्य भी मिलता है और पदम गुणा निमित्त भी बनते हैं। और शब्द तो नहीं बोलेंगे ना। टीचर बनना बहुत अच्छा है, गद्दी तो मिल जाती है ना!दीदी-दीदी का टाइटल मिल जाता है ना। लेकिन िजम्मेदारी भी फिर इतनी है। इस वर्ष में कुछ नवीनता दिखाओ। यह नहीं सोचो-हाथ तो अनेक बार उठा चुके हैं, प्रतिज्ञा भी बहुत वर्ष कर चुके हैं, ऐसे संकल्प न सूक्ष्म में आये, न औरों के प्रति आये। ये संकल्प भी ढीला करता है। ये तो चलता ही आता है, ये तो होता ही रहता है... ये वायब्रेशन भी कमज़ोर बनाता है। दृढ़ संकल्प करो तो दृढ़ता सफलता को अवश्य लाती है। कमज़ोर संकल्प नहीं उत्पन्न करो। उनको पालने में बहुत टाइम व्यर्थ जाता है। उत्पत्ति बहुत जल्दी होती है। एक सेकण्ड में सौ पैदा हो जाते हैं। और पालना करने में कितना समय लगता है! मिटाने में मेहनत भी लगती, समय भी लगता और बापदादा के वरदान व दुआओं से भी वंचित रह जाते। सर्व की शुभ भावनाओं की दुआओं से भी वंचित हो जाते हैं। शुद्ध संकल्प का बंधन, घेराव, ऐसा बांधो सबके लिये, चाहे कोई थोड़ा कमज़ोर भी हो, उनके लिये भी ये शुद्ध संकल्पों का घेराव एक छत्रछाया बन जाये, सेफ्टी का साधन बन जाये, किला बन जाये। शुद्ध संकल्प की शक्ति को अभी कम पहचाना है। एक शुद्ध वा श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प क्या कमाल कर सकता है-इसकी अनुभूति इस वर्ष में करके देखो। पहले अभ्यास में युद्ध होगी, व्यर्थ संकल्प शुद्ध संकल्प को कट करेगा। जैसे कौरव-पाण्डव के तीर दिखाते हैं ना, तीर, तीर को रास्ते में ही खत्म कर देता है तो संकल्प, संकल्प को खत्म करने की कोशिश करता है, करेगा लेकिन दृढ़ संकल्प वाले का साथी बाप है। विजय का तिलक सदा है ही है। अब इसको इमर्ज करो तो व्यर्थ स्वत: ही मर्ज हो जायेगा। व्यर्थ को समय देते हो। कट नहीं करते हो लेकिन उसके रंग में रंग जाते हो। सेकण्ड से भी कम समय में कट करो। शुद्ध संकल्प से समाप्त करो। तो सर्व के शुभ संकल्पों का वायुमण्डल का घेराव कमाल करके दिखायेगा। पहले से ही यह नहीं सोचो कि होता तो है नहीं, करते तो बहुत हैं, सुनते तो बहुत हैं, अच्छा भी बहुत लगता है, लेकिन होता नहीं है। यह भी व्यर्थ वायुमण्डल कमज़ोर बनाता हैं। होना ही है-दृढ़ता रखो, उड़ान करो। क्या नहीं कर सकते हो! लेकिन पहले स्व के ऊपर अटेन्शन। स्व का अटेन्शन ही टेन्शन खत्म करेगा। समझा क्या करना है? कोई कहे यह तो होता ही रहता है, पहले भी प्रतिज्ञा की थी-यह नहीं सुनो। इसमें कमज़ोरों को साथ नहीं देना, साथी बनाना। अगर कोई ऐसा-वैसा बोलता है तो एक-दो में कहते हैं ना शुभ बोलो, शुभ सोचो, शुभ करो। अच्छा। सभी खुश राजी हैं ना, सभी से बात की ना? यह भी बाप का स्नेह है। स्नेह की निशानी है वो स्नेही की कमी नहीं देख सकता। स्नेही की गलती अपनी गलती समझेगा। बाप भी जब बच्चों की कोई बात सुनते हैं तो समझते हैं मेरी बात है। तो स्नेही, सम्पन्न, सम्पूर्ण, समान देखना चाहते हैं। सभी स्नेह में एक शब्द बापदादा के आगे चाहे दिल से, चाहे गीत से, चाहे बोल से, चाहे संकल्प से जरूर कहते हैं, बापदादा तो सबका सुनता है ना। सभी एक बात बहुत बार कहते हैं कि बाबा के स्नेह का रिटर्न क्या दें? क्योंकि क्या से क्या तो बन गये हो ना। कोटों में कोई तो बन गये हो ना, कोई में कोई नहीं बने हो। तो कोटों में कोई तो बने हो ना। इसमें सब पास हो। बाप रिटर्न क्या चाहते हैं? रिटर्न करना है अपने को टर्न करना। समझा? बस, यही रिटर्न है। यह तो कर सकते हो ना? स्नेह के पीछे यह नहीं कर सकते हो! मतलब का स्नेह तो नहीं है ना! स्नेह में त्याग करने के लिये तैयार हो? बाप जो भी आज्ञा करे तैयार हो? स्नेह में सब सेन्ट-परसेन्ट हो या परसेन्टेज है? अपने को टर्न करने के लिये तैयार हो? स्नेह के पीछे यह त्याग है या भाग्य है? भक्त तो सिर उतार कर रखने के लिये तैयार हैं, आप रावण का सिर उतार कर रखने के लिये तैयार हो? शरीर का सिर नहीं उतारो लेकिन रावण का सिर तो उतारो! पांचों ही सिर उतारेंगे या एक-दो रखेंगे? थोड़ा कमज़ोरी का सिर रखेंगे? चलो पांच नहीं, छठा दिखाते हैं ना बेसमझी का, वो रखेंगे? अच्छा। अभी एक-एक जोन हाथ उठाओ।

दिल्ली - दिल्ली वाले क्या कमाल करेंगे, रिटर्न का टर्न करेंगे? त्याग का भाग्य लेने में कितना नम्बर आयेगा? फर्स्ट! सभी फर्स्ट नम्बर लेंगे, फास्ट जायेंगे परिवर्तन करने में? दिल्ली का किला मजबूत है ना।

महाराष्ट्र जोन - महाराष्ट्र कौन-सा नम्बर लेंगे? फर्स्ट! और फर्स्ट से आगे क्या है? ए वन कौन होगा? महाराष्ट्र ए वन होगा या वन होगा? ए वन को आगे जाना पड़ेगा। वैसे दिल्ली वाले भी ए वन कह सकते हैं लेकिन ए वन हैं या वन हैं? वन माना विन, ए वन माना डबल विन। महाराष्ट्र वाले वन से भी आगे ए वन बनना।

कर्नाटक - अब कर्नाटक क्या करेगा? सदा ए वन का नाटक दिखायेगा और नाटक नहीं दिखाना। वैसे कर्नाटक में नाटक बहुत होते हैं। अभी ए वन का नाटक दिखाना।

इस्टर्न- इस्टर्न जोन क्या कमाल करेगा? चारों ओर ए वन का सूर्य उदय करेगा।

तामिलनाडु, केरला - तामिलनाडु में विशेष डांस का महत्व है। तो चारों ओर ए वन का खुशी का नाच दिखायेंगे। सब ए वन।

इन्दौर जोन - इन्दौर वाले क्या करेंगे? इन-डोर का अर्थ है अन्तर्मुखता। तो इन्दौर वाले चारों ओर अन्तर्मुखता की शक्ति के वायब्रेशन से चारों ओर ए वन के वायब्रेशन्स फैलायेंगे। मंजूर है?

यू.पी. - यू.पी. वाले क्या कमाल करेंगे? यू.पी. की विशेषता है नदियों की महानता। सभी विशेष नदियाँ कहाँ हैं? यू.पी. में हैं ना। तो ए वन बनने और बनाने की नदियां बहायेंगे। मंजूर है? नदी कहाँ से निकलेगी? कानपुर से या इलाहाबाद से या सबका मेल होगा? वो तीन नदियाँ मिलती हैं ना। यू.पी. के सर्व सेन्टर की नदियाँ साथ-साथ संगम होकर निकलें। ठीक है ना!

गुजरात जोन - गुजरात वाले मान न मान, मैं तेरा मेहमान हैं। होशियार हैं ना, तो गुजरात वाले क्या कमाल करेंगे? मेहमान बनने में होशियार हो ना तो कमज़ोरी या व्यर्थ की मेहमानी को जो मेहमान बनकर आती है, यह कमज़ोरी ओरीजनल तो है नहीं। तो ए वन बनना बनाना अर्थात् व्यर्थ के मेहमान को समाप्त करना। तो गुजरात वाले अपनी शक्ति से, अपने शुभ ए वन श्रेष्ठ संकल्प से यह व्यर्थ की रात गुजर - गई यह शुभ समाचार सुनायेंगे। गुजरात माना रात गुजर गई। श्रेष्ठता का दिन लाने वाले। मंजूर है? मेहमान बनने में होशियार, मेहमान को निकालने में भी होशियार।

राजस्थान - राजस्थान क्या करेगा? समर्थता पर राज्य करेगा। समझा? व्यर्थ को खत्म कर समर्थता पर राज्य करने वाले राजस्थान। तो ए वन तो हो ही गये ना। ए वन मधुबन है ना राजस्थान में। तो ए वन में एड करो ऑल वन।

पंजाब, हरियाणा - पंजाब ने इस पुरानी दुनिया में भी अभी क्या कमाल की है? आतंकवाद को कमज़ोर कर दिया। तो पंजाब क्या कमाल करेगा? दो, तीन, चार, दस नम्बर को कमज़ोर करेगा। इस आतंकवाद को खत्म करके सदा नम्बरवन। अच्छा!

डबल विदेशी - विदेश क्या करेगा? विदेश वाले कमज़ोरी को अपने विदेश में भेज दो। बिल्कुल दूर देश में भेज दो, जो वापस नहीं आवे। कमज़ोरी, व्यर्थ को विदेश में भेज, देश को समर्थ बनाओ। भारत में या देश में अपने समर्थी का झण्डा लहराओ। इसमें सदा ही एवररेडी, ए वन। समझा! कभी-कभी वाले रेडी नहीं। एवर रेडी, ए वन। समझा!

अभी दिल्ली वाले क्या कमाल करेंगे? क्योंकि दिल्ली सेवा का फाउन्डेशन है। दिल्ली से पहले गरीब निवाज की प्रथा आरम्भ हुई। दिल्ली ने समय की आवश्यकता में सहयोग दिया। दिल्ली से पहला नम्बरवन पाण्डव (जगदीश) निकला। इन्वेन्शन भी दिल्ली काफी नम्बरवन होकर निकालती है। अभी तो सब होशियार हो गये हैं लेकिन निमित्त तो दिल्ली बनी। तो अब ओटे सो अर्जुन में ए नम्बर। ठीक है ना। पाण्डव किला मजबूत करने में ए वन। मंजूर है ना?अच्छा, सभी जोन से मिले। मधुबन वाले जो नीचे बैठे हैं, त्याग किया है, उन्हों को बापदादा दिलतख्त की गिफ्ट सहित विशेष याद-प्यार और पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। सारी सीजन मधुबन वालों ने सेवा की है तो निर्विघ्न, अथक सेवाधारियों को, चाहे मधुबन निवासी, चाहे चारों ओर के मेहमाननिवाजी करने वाले सेवाधा-रियों को बापदादा-सदा उन्नति को प्राप्त होते ही रहेंगे, होना ही है-यह प्रगति का तिलक दे रहे हैं। हॉस्पिटल वाले सभी डॉक्टर्स वा सेवाधारी जो भी हॉस्पिटल में हैं, वो सब हेल्दी और हैप्पी हैं? स्थूल हेल्थ नहीं, आत्मिक हेल्थ। तो सदा हेल्दी और सदा हैप्पी की मुबारक और आबू रोड वाले या तलहटी वाले सभी को बहुत प्यार से रिसीव करते हैं और ठण्डे पानी का आराम देते हैं, गर्म चाय से उमंग दिलाते हैं और भटके हुए को राह भी दिखाते हैं इसलिये रिसीव करने वाले, स्वागत करने वाले और मेहमाननिवाजी करने वाले, सभी को बापदादा सेवा की मुबारक के साथ ‘सदा प्रगति भव’ का वरदान दे रहे हैं। आबू निवासी प्रवृत्ति वाले भी बहुत हैं। सदा प्रवृत्ति में रह श्रेष्ठ वायब्रेशन्स फैलाने की मुबारक। आबू निवासी भी अभी मेहमाननिवाजी अच्छी करते हैं। स्थान देते हैं ना। खुश होते हैं ना सभी। तो सदा उड़ते रहो और उड़ाते रहो।

ज्ञान सरोवर तो है ही सरोवर। सरोवर में जाते ही परिवर्तन हो जाता है। तो ज्ञान सरोवर को बापदादा आत्माओं की वृत्ति और जीवन परिवर्तन करने का सरोवर कहते हैं। इसलिये ज्ञान सरोवर में सेवा करने वाले सदा ही अथक भव और सदा वृद्धि को प्राप्त भव आत्मायें हैं। प्रगति की सफलता का वरदान ज्ञान सरोवर के स्थान और सेवाधारियों को सदा है ही। अच्छा!

चारों ओर के मन की उड़ान में उड़ने वाले मधुबन निवासी अव्यक्त रूपधारी आत्माओं को और साथ-साथ संकल्प के विमान द्वारा मधुबन में पहुँचने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को और चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ स्नेही, स्नेह में त्याग के भाग्य का श्रेष्ठ संकल्प करने वाली आत्माओं को, सदा ए वन के संकल्प को प्रत्यक्ष जीवन में लाने वाले बाप के समीप आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और हर एक भिन्न-भिन्न भारत के देश वा विदेश के हर एक बच्चे को नाम सहित विशेषता सम्पन्न याद-प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात

हर समय की सीन न्यारी और प्यारी है। आप लोगों का बचपन का गीत कौन-सा है? ‘नया दिन लागे, नयी रात लागे.....’ इस गीत पर नशे से डांस करते थे ना! तो नवीनता में मजा है ना। वही-वही सीन बदलनी तो है ही और जो बदलता है वो नया ही होता है। पुराना तो खत्म होता है, नया होता है। तो हर समय की सीन, हर समय की बातें नये ते नयी। तो नया अच्छा लगता है या पुराना? नया अच्छा है ना! (याद पुराना करते हैं) याद करते हैं लेकिन पसन्द तो नया करते हैं ना। तो नया ही होना है। अच्छा! सभी खुश हैं ना? तन से, मन से खुश ही खुश हैं।

1- अब आत्म-शक्ति के उड़ान के तीव्रगति की आदि करो तो जो सोचेंगे वही होगा।

2- सेंट (महान) बनने के लिए व्यर्थ से इनोसेंट बनो।

3- व्यर्थ की अविद्या होना ही दिव्यता की अनुभूति का आधार है।

4- सच्चा पुरुषार्थी वह है जो पुरूष बन रथ द्वारा कार्य कराये।

5- हद के किनारों का सहारा छोड़ एक बाप को अपना सहारा बनाओ।

6- अल्पकाल की बातें धोखेबाज हैं, बाप का सहारा ही छत्रछाया है।

7- व्यर्थ का सामना करना समाप्त करो तो सेवा की ऑफर सामने आयेगी।

8- औरों को माइक बनाओ, आप माइट बनो।

9- तीव्रगति की उड़ान में अनेक प्रकार की बातें ही बादल हैं, उन्हें सेकण्ड में क्रास करो।

10- शुद्ध संकल्पों का ऐसा घेराव डालो जो कमज़ोर आत्माओं के लिए सेफ्टी का साधन बन जाए।

11- शुद्ध वा श्रेष्ठ संकल्प इमर्ज करो तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेगा।